काल सर्प दोष क्या है? कुंडली में कालसर्प दोष कैसे बनता है और इस योग को कालसर्प योग क्यों कहा जाता है?
कालसर्प योग, मूलतः संस्कृति के दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ भिन्न भिन्न कर्मकांडी विद्वानों ने निकाला है, ये दो शब्द है ‘काल’ एवं ‘सर्प’, काल के भी दो अर्थ है, प्रथम मृत्यु और दूसरा है समय, इसी प्रकार से सर्प शब्द के भी दो अर्थ है, प्रथम है सर्प अर्थात नाग और दूसरा है रेंगना, अब हम अगर दोनों शब्दों को संयुक्त करते है तो चार अर्थ निकलते है प्रथम सर्प द्वारा मृत्यु, दूसरा समय पर नाग का प्रकोप, तीसरा बहुत ही दुर्दशा के साथ जीवन जीना, यही समय का रेंगना, और चौथा है मृत्यु का धीरे धीरे व्यक्ति को अपने निकट बुलाना किन्तु बहुत कष्टों के साथ, इस प्रकार किसी भी अर्थ में यह उस व्यक्ति के लिए शुभ नहीं है जिसकी कुंडली में कालसर्प योग बना हुआ है।
काल सर्प पूजा इन उज्जैन
ज्योतिष का अध्ययन करने पर हमने पाया कि राहु के अधिष्ठाता ‘काल’ हैं और केतु के अधिष्ठाता नाग हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु को सांप का मुंह और केतु को सांप की पूंछ माना जाता है, जब जन्म कुंडली में बाकी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं, तो इस संयोजन को काल सर्प योग कहा जाता है जातक की जन्म कुंडली में राहु केतु जिस स्थान पर विराजमान होता है उस घर के फल को नष्ट कर देता है, जातक उस भाव से पीड़ित हो जाता है और उसके जीवन में कई उतार-चढ़ाव और संघर्ष आते हैं।
कालसर्प योग को अशुभ माना जाता है। कालसर्प योग, 12 प्रकार के होते हैं ऋग्वेद की कथा के अनुसार सागर मंथन के समय स्वरभानु दैत्य ने अमृत पिया था, सूर्य चंद्र के वर्णन पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु दैत्य को दो भागों में विभाजित कर दिया और सिर का नाम था राहु और धड़ का नाम केतु था। इसे रखा गया, अमृत पीने से अमर हो गया, ब्रह्मा जी ने स्वरभानु को वरदान दिया कि उन्हें ग्रह प्रणाली में स्थान मिला।
कालसर्प योग कैसे बनता है ?
कुंडली में कालसर्प योग के बारें में भी ज्योतिष बेहद ध्यान देते हैं। कालसर्प तब होता है जब राहु-केतु के मध्य सातों ग्रह हो। सरल शब्दों में जब जातक की कुंडली में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि राहु और केतु के बीच आ जाए तब ‘कालसर्प योग’ निर्मित होता है। कुंडली के अनुसार राहु केतु राक्षस ग्रह है और कोई भी राक्षस अपना दुष्प्रभाव नहीं छोड़ता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु केतु कुंडली के अंदर कई दोष पैदा करता है।
काल सर्प दोष के लक्षण :
कालसर्प दोष के कारण सपने में सर्प का दिखना खाने में अधिक बाल आना नींद में चमकना और बनते बनते काम बिगाड़ना कालसर्प दोष का मुख्य लक्षण है इस दोष की वजह से संतान उत्पत्ति में बाधा, निराशा, अवसाद, असफलता आदि का सामना करना पड़ता है।
कालसर्प दोष का निवारण
कालसर्प दोष है तो उसका समाधान भी है, आज इस संसार में जो कुछ भी है वह वेदों की देन है। और ऋषियों को भगवान का जप और पूजा करने से कई शक्तियां मिलीं, हम भगवान की पूजा और पूजा से भी कई समस्याओं को दूर कर सकते हैं।
कालसर्प पूजा क्या है ?
शास्त्रों के अनुसार राहु और केतु छाया ग्रह हैं, जो जन्मकुंडली में हमेशा एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं, यदि राहु केतु के बीच में सभी ग्रह हों तो पूर्णकालिक सर्प दोष होता है और एक ग्रह बाहर हो तो आंशिक काल नाग दोष उज्जैन तीर्थ नगरी है। यही महाकाल स्वयं विराजमान हैं। मृत्युलोक के अधिपति भगवान महाकाल हर समय हारने वाले हैं और साथ ही यह महाकाल की नगरी है। इसलिए यहां सच्चे मन से की गई पूजा भगवान शिव के परिवार की कृपा के साथ-साथ विशेष फलदायी होती है और इसे करने वाले पर अन्य देवी-देवताओं की भी कृपा प्राप्त होती है।
कालसर्प पूजा किसको करवानी चाहिए?
जन्म कुंडली में जातक राहु केतु से पीड़ित हो अपने व्यापार को स्थापित नहीं कर पा रहा हो जातक को अपने जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना अधिक करना पड़ता है बार-बार कार्य करने के बाद भी असफलता की प्राप्ति हो रही हो।
काल सर्प योग से बचने के उपाय : महाकालेश्वर के ऊपरी तल पर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है इसीलिए महाकाल वन मे काल सर्प दोष पूजा कराने से विशेष फल और मनोकामना की पूर्ति होती है जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ध बना रहता हो, जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, आपकी जन्म पत्रिका में कौन सा कालसर्प दोष है यहां जानने के लिए किसी विद्वान ब्राह्मण को अपनी जन्म पत्रिका दिखाएं पत्रिका दिखाने के लिए आचार्य प्रशान्त गुरुजी से अभी संपर्क करें और सभी प्रकार के कालसर्प दोष का निदान एवं निराकरण कराएं।
1 अनंत कालसर्प योग:
जब लग्न में राहु और सप्तम भाव में केतु हो और उनके बीच समस्त अन्य ग्रह इनके मध्या मे हो तो अनंत कालसर्प योग बनता है। इसके कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती। वह सदैव अशान्त क्षुब्ध परेशान रहता है।
2 कुलिक कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के व्दितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतू हो तथा समस्त उनके बीच हों, तो यह योग कुलिक कालसर्प योंग कहलाता है।
3 वासुकी कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग वासुकि कालसर्प योग कहलाता है।
4 शंखपाल कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के चौथे भाव में राहु और दसवे भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग शंखपाल कालसर्प योग कहलाता है।
5 शंखपाल कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के चौथे भाव में राहु और दसवे भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग शंखपाल कालसर्प योग कहलाता है।
6 पद्म कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु और ग्याहरहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच हों तो यह योग पद्म कालसर्प योग कहलाता है।
7 कुलिक कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच कैद हों तो यह योग महापद्म कालसर्प योग कहलाता है।
8 तक्षक कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तथा बाकी के सारे इनकी कैद मे हों तो इनसे बनने वाले योग को तक्षक कालसर्प योग कहते है।
9 कर्कोटक कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के अष्टम भाव में राहु और दुसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को कर्कोटक कालसर्प योग कहते है।
10 शंखनाद कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है।
11 पातक कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के दसवें भाव में राहु और चौथे भाव में केतु हो और सभी सातों ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो यह पातक कालसर्प योग कहलाता है।
12 विषाक्तर कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है।
13 शेषनाग कालसर्प योग:
जब जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु और छठे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पूजा और धार्मिक कार्यों के लिए पंडितों को ढूंढना आसान नहीं है। हम, मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित उज्जैन में सर्वश्रेष्ठ पंडित सार्थक शर्मा , एक उद्देश्य के साथ आपको बहुत प्रतिस्पर्धी और उचित मूल्य पर पंडित सेवाएं प्रदान करना है। विशेषज्ञों का हमारा जानकार पैनल आपकी चिंताओं को हल करने और सुगम और तनाव मुक्त जीवन के लिए दिव्य आशीर्वाद की बौछार करने में आपकी मदद करेगे।
मंगल ग्रह यदि जन्मकुंडली के लग्न, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो तो कुंडली को मांगलिक माना जाता है, ऐसा होने पर ऐसे जातक का विवाह भी मांगलिक स्त्री या पुरुष से ही करना चाहिए|
इसी प्रकार शनि देव यदि जन्मकुंडली के लग्न, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो या दृष्टिगत भी हो तो कुंडली में मांगलिक योग का परिहार हो जाता है, सभी मांगलिक कुंडलियो में मांगलिक दोष हो
ऐसा जरुरी नहीं होता है, लोग व्यर्थ में मांगलिक योग सुन के भयभीत हो जाते है, जबकि मंगल ग्रह तो शुभ कार्य, भूमि, ऋणहरता एवं फल प्रदान करने वाले देवता है, कुंडली में मंगल जब ख़राब होता है तब इन्सान , कुछ दोगल होजाता है ,
और यही कारन है की वहा अपने जीवन में अक्सर सफल होता है, एसा इन्सान मोम की तरह पिघल ता रहता है , या पत्थर की तरह रहकर हमेंशा दूसरो को चौट देता रहता है ,जब जब मंगल को चन्द्र - सूर्य का साथ नहीं मिलता तब वहा नीच का
होजाता है नीच का मंगल सब का शत्रु होता है ,जातक धर्म के विरुध काम करता है या करवाता है , फिर ऐसे जातक की म्रत्यु हतियार या किसी लम्बी बीमारी से होतीहै , कुंडली के कुछ बेठे मंगल ख़राब और कुछ बहुत अच्छे भी होते है|
उज्जैन में मंगल भात पूजन इसके आलावा त्वरित उपाय हेतु - मंगल भातपूजन करवाना चाहिए, भात पूजा सम्पूर्ण विश्व में केवल उज्जैन अवंतिका क्षेत्र में होती है, यहाँ स्कंधपुराण में अवंतिका खंड के अनुसार भगवान शिव के मस्तक के पसीने की बूंद पृथ्वी पर उज्जैन अवन्तिका क्षेत्र में गिरने से भगवान श्री महामंगल का जन्म हुआ, भगवान श्री महामंगल अंगार के सामान लालवर्ण वाले रक्ताक्ष, भूमिपुत्र, आदि नामो से जाने जाते है, भगवान श्री महामंगल के मंदिर के शिखर से कर्क रेखा गुजरती है. और ये मंदिर आती प्राचीन है, यहाँ करायी गयी पूजा से मंगल दोष का परिहार होता है
पित्र दोष पूजन निवारण और इस पूजन से क्या क्या फल यजमान को प्राप्त होता है मुख्यपितृदोष तीन प्रकार का होता है 1 त्रिपिंडी का पूजन होता है विष्णु लोक के पितरों के लिए सात्विक पिंड अर्पण करते हैं जो उनको विष्णुलोक में प्राप्त होता है ब्रह्मलोक के पितरों के लिए राजसी पिंडअर्पण करते हैं जॉन को ब्रह्मलोक में प्राप्त होता हैऔर रूद्र लोग के पितरों के लिए तामसिक अर्पण करते हैं जो उनको रूद्र लोक में प्राप्त होता है इस पूजन के करने से तीनो लोग के पुत्र संतुष्ट होते हैं और कुटुंब परिवार को अच्छा आशीर्वाद प्रदान करते हैं जिससे घर में खुशहाली सुख शांति अ अन्न का धन का लक्ष्मी का भंडार रहता है इस पूजन को अगर कुंडली में दोष नहीं हो तो भी राजी खुशी से भी पितरों की कृपा आशीर्वाद पाने के लिए किया जा सकता है
2 पितृदोष में दूसरे प्रकार से जो पितृदोष होता है जिसको नारायण वली श्राद्ध पूजन कहते हैं यह उन पितरों के लिए होता है जो प्रेत की योनि में भटक रहे होते हैं जो अधोगति में मृत्यु होती है जैसे एक्सीडेंट आत्महत्या सर्प के काटने से करंट से जल में डूब के और अधोगति में जो चले जाते हैं उन पितरों के लिए नारायण बलि का विधान किया जाता है जिससे वह प्रेत की योनि से निवारण होकर पितरों की श्रेणी में आते हैं उनको विष्णु लोक की प्राप्ति होती है 3 पितृदोष का तीसरा विधान यह है यह विधान 3 दिनों का होता है इस विधान का नाम नागवली नारायण वलि है इस विधान में पितरों को सर्प की योनि में बहुत सालों तक भटकना पड़ता है क्योंकि सर्प की आयु बहुत लंबी होती है इस विधान में 3 दिनों तक पूजा होती है यह पूजन किस लिए किया जाता है इस पूजन का मुख्य कारण यह है कि जिस परिवार में संतान आदी उत्पन्न नहीं हो रही हो तथा घर में ग्रह कलेश हो रहा हो इस पूजन करने से संतान इत्यादि का सुख प्राप्त किया जा सकता है इस पूजन की अधिक जानकारी के लिए पंडित जी से कॉल पर चर्चा करें यह विधान पितरों का सबसे बड़ा विधान कहा जाता है पितृदोष और कालसर्पदोष का सबसे प्राचीन स्थान सिद्धवट घाट है यहीं पर पितरों को मुक्ति प्रदान होती है इसलिए पित्र दोष सिद्धवट घाट पर होता है यहां बैकुंठ द्वार है पितरों को वैकुंठ की प्राप्ति होती है |
For Best Result Call Now : 8109313097महामृत्युंजय मंत्र का जप क्यों किया जाता है? ऊँ हौं जूं सः ऊँ भूर्भुवः स्वः ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ऊँ स्वः भुवः भूः ऊँ सः जूं हौं ऊँ ॥ महामृत्युंजय मंत्र जाप विधान वैसे तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप मनुष्य स्वयं भी कर सकता है, जैसे स्नान के समय जब आप जल सर पर डाल रहे हो तब जाप करने से शरीर निरोग रहता है, किसी भी भोज्य या पेय पदार्थ का सेवन करने से पहले इस मंत्र के जाप से उस भोजन का बहुत ही सकारत्मक प्रभाव पड़ता और वह भोजन स्वस्थ प्रद होता है, यही दैनिक जीवन का आधार है, किन्तु किसी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए आपको महामृत्युंजय मंत्र का जाप किसी विशुद्ध सदाचारी एवं शाकाहारी ब्राह्मण से ही करवाना चाहिए, कुछ विशेष समय के लिए मंत्र जाप की संख्या भी होती है जैसे : महामृत्युंजय जाप भगवान शिव को रुद्राक्ष प्रिय है। रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र या फिर लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र का जाप सवा लाख बार और लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप 11 लाख बार करने का विधान है। सावन सोमवार का दिन अत्यंत उत्तम माना जाता है। आप चाहें तो इस दिन लघु मृत्युंजय मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र के जाप का प्रारंभ कर सकते हैं। मंत्र जाप में मन और आचरण की शुद्धता के साथ मंत्र का शुद्ध उच्चारण भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। मन को शांत करके इस मंत्र का जाप करना चाहए। मंत्र जाप पूर्ण होने के बाद हवन करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति इसीलिए हुई कि अकाल मृत्यु को पराजित किया जा सके:- पुराणों के अनुसार भगवान शिव के महान भक्त मार्तंड संतानहीन थे, इसकी वजह से वह बहुत दुखी थे| उनकी कुंडली में भी कोई संतान योग नहीं था| उन्हें संतान की अधिक चाहा थी, इसीलिए उन्होंने सोचा कि अगर देवों के देव महादेव विधान को बदल सकते हैं तो मेरे भाग्य को क्यों नहीं बदल सकते| उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया तब प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए, और कहा कि मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं| शिव जी के वचन सुनकर मार्तंड ऋषि प्रसन्न हो गए और शिव जी की कृपा से उन्हें शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति हुई उन्होंने उस बालक का नाम मार्कण्डेय रखा गया| ज्योतिष ने बताया यह बालक अल्पायु आयु है, इसकी आयु मात्र 12 वर्ष है, यह सुनकर उनकी खुशी दुखों में बदल गई| तभी मार्तंड ऋषि ने अपनी पत्नी को आश्वासन देते हुए कहा कि, शिव भगवान ने मार्कंडेय को जन्म का वरदान दिया वहीं उसके प्राणों की रक्षा भी करेंगे, और उसे दीर्घायु होने का वरदान देंगे| समय के साथ मार्कंडेय बड़े होने लगे, मार्तंड ऋषि ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा दी| समय बीतने के साथ-साथ मार्तंड ऋषि और उनकी पत्नी की चिंता भी बढ़ती जा रही थी| माता-पिता को परेशान देखकर मार्कंडेय ने इसका कारण पूछा तो माता ने उन्हें अल्पायु होने की बात बता दी यह सब बात सुनकर मार्कंडेय ने अपने माता-पिता को यह विश्वास दिलाया कि, मैं शिवजी से शीघ्र दीर्घायु का वरदान प्राप्त कर लूंगा, और महाकाल वन में जाकर तप करने लगे महाकाल वन में मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और इस मंत्र का जाप करने लगे| समय बीतता गया जब वह 12 वर्ष के हो गए तो यमदूत उन्हें लेने आए| यमदूत ने यहां आकर देखा कि मार्कंडेय महाकाल की आराधना में लीन है, उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की लेकिन यमदूत का साहस नहीं हुआ कि वह मंत्र जाप कर रहे मार्कंडेय के प्राणों को हर सके और वह वापस लौट गए| यमलोक जा करके उन्होंने यमराज को सारी बात बताई| फिर यमराज मार्कंडेय को लेने आए यमराज को देखकर मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए तो यमराज ने मार्कंडेय को ले जाने की कोशिश की यमराज के पैरों में बेड़ियां बंद गई और भगवान महाकाल वहां प्रकट हो गए और यमराज को कहा कि तुम काल हो तो मैं महाकाल हूं भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को कहा कि तुम्हारी आयु दीर्घ हो और जो भी महामृत्युंजय मंत्र का जाप करवाएगा उसकी आयु भी दीर्घ होगी और यमराज वहां से लौट गए | महामृत्युंजय जाप महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करवाना चाहिए? मनुष्य की कुंडली में अनेक प्रकार के शुभ योग होते हैं, अनेक प्रकार के अशुभ योग होते हैं| मनुष्य की कुंडली में जब मारक ग्रह की महादशा अंतर्दशा आती है तो धीरे-धीरे वह रोगों से ग्रसित होता जाता है| छोटी-छोटी सी घटनाएं भी बड़ी घटना में परिवर्तित हो जाती है, फिर डॉक्टर भी बोलते हैं कि इन्हें दवाई कि नहीं दुआ की जरूरत है| उस स्थिति में भी हमने महामृत्युंजय मंत्र जाप द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ होते हुए देखा है, उज्जैन महाकालेश्वर की नगरी में महामृत्युंजय जाप कि वे दो पद्धति द्वारा संपन्न करवाने के लिए पंडित सार्थक शर्मा जी से आज ही संपर्क करें। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पूजा और धार्मिक कार्यों के लिए पंडितों को ढूंढना आसान नहीं है। हम, मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित उज्जैन में सर्वश्रेष्ठ पंडित सार्थक शर्मा जी , एक उद्देश्य के साथ आपको बहुत प्रतिस्पर्धी और उचित मूल्य पर पंडित सेवाएं प्रदान करना है। विशेषज्ञों का हमारा जानकार पैनल आपकी चिंताओं को हल करने और सुगम और तनाव मुक्त जीवन के लिए दिव्य आशीर्वाद की बौछार करने में आपकी मदद करेगे। यदि आप काल सर्प पूजा / मंगल पूजा / महामृत्युंजय जाप / अर्क / कुंभ विवाह /रुद्राभिषेक पूजा / वास्तु दोष / नवग्रह शांति / पूजन करना चाहते हैं तो बस हमें फोन करें 8109313097 और हम आपकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करेंगे। प्रत्येक यजमान की जरूरतों को देखा जाता है और प्रत्येक यजमान को उनकी जरूरतों और बजट के अनुसार गुणवत्तापूर्ण सेवाएं मिलती हैं।
For Best Result Call Now : 8109313097पुरूषों के विवाह में आने वाली विलम्ब या दोषों को दूर करने के लिए कन्या का विवाह करने से पूर्व पुरुष का विवाह सूर्य पुत्री से करवाना चाहिए, जो धनुषाकार वृक्ष के रूप में होती है, विवाह के बाद यह विवाह विधि अर्क कहलाती है। विवाह। जिन पुरुषों की कुण्डली में सप्तम भाव, अष्टम शुक्र, सूर्य, सप्तम, द्वादेश, शनि हो, उन पर शनि की युति होती है। यदि वर की कुण्डली में आठ मंगलदोष हों, भावों में मंगल 1,2,4,7,8,12 में हो तो वह दाम्पत्य विलम्ब या वैवाहिक सुखों में संस्कार योग है। ऐसे पुरुषों को अपने माता-पिता के साथ आना चाहिए और एक अर्क के पेड़ से उनका विवाह करना चाहिए। इसके बाद उन्हें किसी लड़की से शादी करनी चाहिए। ताकि बच्ची को कोई नुकसान न हो। कुंभ विवाह जब चंद्र-तारा अनुकूल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रमति है। धर्म सिंधु ग्रंथ में तत्संबंध में अर्क-विवाह (लड़के के लिए) एवं कुंभ विवाह (लड़की के लिए) कराना चाहिए। अर्क / कुंभ विवाह कुंभ विवाह क्या है ? यदि लड़की की कुंडली में विवाह योग नहीं है या विवाह में देरी हो रही है, तो ऐसी लड़कियों की कुंडली में चूड़ा मंगल दोष से प्रभावित होता है। मांगलिक दोष से मुक्ति पाने के लिए कन्या का विवाह कुम्भ से किया जाता है। भगवान विष्णु को कुंभ का रूप मानकर उनकी पुत्री का विवाह भगवान विष्णु से होता है, जिससे मांगलिक दोष का नाश होता है और भगवान विष्णु उनके पति की रक्षा करते हैं। इस पूजा को घाट विवाह कहते हैं। कन्या की कुण्डली में सप्तम भाव अष्टम भाव से पीड़ित हो, अष्टम भाव शुक्र से पीड़ित हो, सप्तम सूर्य अष्टम बारहवें भाव शनि से पीड़ित हो। यदि मंगल दोष कुंडली में 1,4,7,8,12 भाव में मंगल हो तो लड़की मांगलिक होती है। लड़की के माता-पिता को चाहिए कि वह लड़की की शादी से पहले कुम्भ की शादी करवा दे ताकि लड़की को जीवन में किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। भगवान विष्णु की कृपा उन पर सदैव बनी रहे। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पूजा और धार्मिक कार्यों के लिए पंडितों को ढूंढना आसान नहीं है। हम, मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित उज्जैन में सर्वश्रेष्ठ पंडित सार्थक शर्मा जी , एक उद्देश्य के साथ आपको बहुत प्रतिस्पर्धी और उचित मूल्य पर पंडित सेवाएं प्रदान करना है। विशेषज्ञों का हमारा जानकार पैनल आपकी चिंताओं को हल करने और सुगम और तनाव मुक्त जीवन के लिए दिव्य आशीर्वाद की बौछार करने में आपकी मदद करेगे। यदि आप काल सर्प पूजा / मंगल पूजा / महामृत्युंजय जाप / अर्क / कुंभ विवाह /रुद्राभिषेक पूजा / वास्तु दोष / नवग्रह शांति / पूजन करना चाहते हैं तो बस हमें फोन करें 8109313097 और हम आपकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करेंगे। प्रत्येक यजमान की जरूरतों को देखा जाता है और प्रत्येक यजमान को उनकी जरूरतों और बजट के अनुसार गुणवत्तापूर्ण सेवाएं मिलती हैं।
For Best Result Call Now : 8109313097हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं। भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषियों ने शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है यथा रुद्राभिषेक क्यों करते हैं? रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं। रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ? प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ। संस्कृत श्लोक जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै। मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा। पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।। बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना। जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।। घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्। तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः। प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम। केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः। शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्। श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!! सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह! पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।। जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै। पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा। महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा। कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्। अर्थात जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है। कुशा जल से अभिषेक करने पर — रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है। दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है। गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए। तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है। इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है । दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण गंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है। दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू। घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है। सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है। शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू। इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं हमारे वैदिक ब्राम्हणो से रुद्राभिषेक सम्पन्न कराया जाता है।
For Best Result Call Now : 8109313097बृहस्पति और राहु जब साथ होते हैं या फिर एक दूसरे को किन्ही भी भावो में बैठ कर देखते हो, तो गुरू चाण्डाल योग निर्माण होता है। चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। कहा गया कि चाण्डाल की छाया भी ब्राह्मण को या गुरू को अशुद्ध कर देती है। गुरु चंडाल योग को संगति के उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुण खो देते है। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। राहु चांडाल जाति, स्वभाव में नकारात्मक तामसिक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है। जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, उसकी अपने परिवार जनो से भी नही बन पाती तथा वह खुद को अकेला महसूस करने लग जाता है और उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है। उपाय :- गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके। राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।
For Best Result Call Now : 8109313097इस कलियुग में भगवान भैरव सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति के उप्पर किसी ने कुछ तंत्र मंत्र कर रहा है या जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई चल रही हो जैसे व्यापार ना चलना , ग्रह क्लेश , व्यापार में हानि, किसी चीज़ में मन ना लगना इत्यादि हेतु भगवान भैरव का हवन पूजन किया जाता है भगवान भैरव सेवा हवन पूजन अनुष्ठान करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर होते है और उसे आंनद की प्राप्ति होती है
For Best Result Call Now : 8109313097मां राज राजेश्वरी बगलामुखी पूजन के द्वारा सभी शत्रु पर विजय एवं काम क्रोध आदि पर नियंत्रण भगवती आराधना अनुष्ठान जाप के द्वारा राज्य धन व्यापार कार्यक्षेत्र मैं यश विजय लाभ आदि प्राप्ति होती है देवी आराधना से सभी प्रकार का सुख समृद्धि विपुल धन धान्य की प्राप्ति होती है जय," मां बगलामुखी"
For Best Result Call Now : 8109313097भगवान बाल कृष्णा स्वरूप संतान प्राप्ति के लिए विशेष संतान गोपाल अनुष्ठान कर्म संपादित किया जाता है भगवान बालकृष्ण की सेवा के द्वारा शीघ्र ही शुभ संतान की प्राप्ति होती है भगवान कृष्ण ने जिस प्रकार से सभी दुख दरिद्र सुदामा जी का दूर किया था उसी प्रकार भगवान बालकृष्ण अपनी दिव्य अनुकंपा दया दृष्टि से मनुष्य को उनकी सेवा के द्वारा बाल कृष्ण स्वरूप संतान की प्राप्ति होती है अनुष्ठान कर्म पंडित आचार्य सार्थक शर्मा के द्वारा विशेष रुप से संतान प्राप्ति के लिए अनुष्ठान कर्म किया जाता है
For Best Result Call Now : 8109313097विषेश रूप से किया जाने वाला कर्म नवचंडी एवं शतचंडी अनुष्ठान के द्वारा कुल देवी की प्रसन्नता एवं सभी प्रकार से अमंगल को हरण करने के लिए मंगल कामना की प्रार्थना के लिए मां कुलदेवी प्रसन्नता एवं देवी प्रकोप शांति के लिए विशेष स्वरुप कुलदेवी पूजन कर्म संपादित किया जाता है कुलदेवी के आशीर्वाद से कुल की वृद्धि एवं सभी प्रकार का अमंगल महामारी आदि का विनाश होता है एवं सर्व कार्य की सिद्धि प्राप्त होती है! जय मां कुलदेवी
For Best Result Call Now : 8109313097पंडित सार्थक शर्मा ( सार्थक गुरु जी ) वर्तमान समय में उज्जैन अवंतिका तीर्थ में यजमान के कल्याण के लिये एवं कुंडली में नवग्रह जनित दोषों के निवारण के लिए मंगलनाथ मंदिर , अंगारेश्वर महादेव मंदिर , विक्रांत भैरव मंदिर , महाकाल मंदिर काल भैरव मंदिर एवं अन्य मंदिरों में पूजन अनुष्ठान करवाते है
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